“एको अहं, द्वितीयो नास्ति, न भूतो न भविष्यति”

कथक नृत्य के हस्ताक्षर पद्म विभूषण पंडित बिरजू महाराज जी।
(४ फरवरी १९३८ – १७ जनवरी २०२२)

नृत्य विभाग, संगीत एवं मंच कला संकाय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी में मेरी नियुक्ति होने के बाद वहां की संकाय प्रमुख एवं कथक नृत्यांगना प्रो डॉ रंजना श्रीवास्तव जी के मुख से उनकी उत्कंठा सुनी ” कि नृत्य विभाग बनने पर अपने गुरु पद्मविभूषण पंडित बिरजू महाराज जी को एक बार यहां बुलाना चाहती हूं। जब तक उनके कदम नवनिर्मित नृत्य विभाग के एक-एक कक्ष में नहीं पड़ेंगे तब तक मुझे चैन नहीं आएगा उनका भव्य सम्मान करना चाहती हूं।” मुझे आप लोगों का सहयोग चाहिए। (प्रो प्रेमचंद होम्बल एवं डॉ विधि नागर) हम दोनों रंजना मैडम के साथ उत्साह से भर उठे। सभा बुलाई गई, चर्चाएं हुई कि महाराज जी आएंगे।वह तो गायन वादन तथा नृत्य समेत रंगों तथा शब्दों के चितेरे भी हैं सम्मान समारोह में आखिर उनको किस अलंकरण से विभूषित किया जाए? असंख्य अलंकार तो पहले ही उनके नाम लिखे जा चुके थे, समस्त संकाय द्वारा विचार मंथन के बाद “संगीत सम्राट” की उपाधि से उनको सुशोभित किया जाए ऐसा तय हुआ। (क्योंकि काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी द्वारा महाराज जी को डी लिट् की मानद उपाधि से पहले ही अलंकृत किया जा चुका था)

आज जब लिखने बैठी हूं तो एक छोटी से छोटी बात भी याद आ रही है कि किस प्रकार उत्साहित होकर हम लोग महाराज जी के आने के बाट जोह रहे थे दिन तय हुआ 15,सितंबर 2011,
वृहद स्तर पर तैयारियां शुरू हो चुकी थी कहीं रंगोली बनाई जा रही थी तो कहीं कार्ड छप रहे थे कहीं पूरे बनारस समेत बाहर भी न्योते बांटे जा रहे थे महाराज जी की खातिरदारी कैसे होगी ?मंच पर कैसी व्यवस्थाएं होंगी? किस प्रकार उनके स्वागत में कथक और भरतनाट्यम के विद्यार्थी कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे अनेक रूप रेखाएं तय की जाने लगीं।

मुझे बहुत अच्छे से याद है कि महाराज जी के अंगवस्त्रम के लिए मैं और श्रीमती माला होम्बल जी (भरतनाट्यम नृत्यांगना) बनारस की बरसात में पानी भरी सड़कों को दुपहिया वाहन से चीरते हुए एक के बाद एक दुकानों में लगभग 2 दिन की कड़ी मेहनत के बाद, कि महाराज जी पर क्या जचेंगा यह सोच कर एक बनारसी अंगवस्त्रम लाए । देखते ही संकाय के सभी सदस्यों ने समवेत् स्वर से स्वीकृति दी और हम लोगों की मेहनत सफल हुई।

निश्चित दिवस पर महाराज जी समेत उनकी प्रमुख शिष्याओं में सुश्री शाश्वती सेन, सुश्री संगीता सिन्हा, प्रो डॉ पूर्णिमा पांडे, अनेक विभूतियां पद्मविभूषण पंडित राजन साजन मिश्र, पद्मविभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्र, पद्मश्री प्रो राजेश्वर आचार्य, प्रो डॉ चित्तरंजन ज्योतिषी, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति समेत शहर के सभी संगीतज्ञ, कला मर्मज्ञ ,कला रंजक तथा विश्वविद्यालय परिवार के सभी सदस्य ऐसे अभूतपूर्व क्षण के साक्षी बनने के लिए उपस्थित थे। पंडित ओंकारनाथ ठाकुर प्रेक्षागृह लगभग कई हजार लोगों के हुजूम के साथ बालकनी तक खचाखच भरा हुआ था।

और देखते ही देखते वह दिन भी आ गया जिस दिन कथक हस्ताक्षर पद्म विभूषण पंडित बिरजू महाराज जी के कदम काशी हिंदू विश्वविद्यालय के नृत्य विभाग में पड़े और हम सब नाच उठे। संपूर्ण आयोजन और हम सब का उत्साह देखकर महाराज जी ने हम सभी को बहुत आशीर्वाद दिया। विलक्षण कला के जादूगर के मंच पर आते ही सुर- लय और ताल का जादू सब पर चढ़ने लगा एक के बाद एक उन्होंने गायन वादन और नृत्य के शिल्पालेखों पर लय ताल रूपी रंगों का चित्रण करना शुरू कर दिया और हम सभी मंत्रमुग्ध होकर न जाने कितनी बार कह उठे “नमः पार्वती पते हर हर महादेव”।

नृत्य विभाग की कक्षाएं देखकर उन्होंने भूरी भूरी प्रशंसा की। उन पलों से प्राप्त हुए आशीर्वाद को संजोए आज भी हम लोग कथक की लौ को पूरी चेतना और उत्साह के साथ जगाए हुए हैं।

17 जनवरी 2022 मात्र एक दिवस है जब इस भौतिक शरीर को आपने छोड़ा है परंतु मुझे पूरा विश्वास है कथक की इस अनंत यात्रा के 83 वर्षों की इस यात्रा में जो दो सदियां (२० तथा २१ वी शताब्दी) आपने जी है, वह अद्भुत है। आपकी कथक की सेवा और सोच ने आपको अमर कर दिया।

One thought on ““एको अहं, द्वितीयो नास्ति, न भूतो न भविष्यति”

  1. सुन्दर आलेख विधि !
    ऐसी महान विभूतियां कहीं जाया नहीं करतीं, बल्कि हमारे मन मष्तिष्क के हर कोने में बस जाती हैं और साक्षात उनके दर्शन हमें होते रहते हैं चिर काल तक ! 😊🌷🍀🙏

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